पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६४

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अनुमान किया है ( ११३ ) इस पर डा० बूलर ने लिखा है कि यदि अंक- गणित की प्राचीनता का हॉर्नली का यह बहुत संभावित अनुमान ठीक हो तो उस (अंक-क्रम ) के निर्माण का समय ई० स० के प्रारंभकाल अथवा उससे भी प्राचीन काल का होगा। अभी तक तो नवीन शैली के अंकों की प्राचीनता का यहीं तक पता चला है । शून्य की योजना कर नौ अंकों से गणित शास्त्र को सरल करने- वाले नवीन शैली के अंकों का प्रचार पहले पहल किस विद्वान् ने किया इसका कुछ पता नहीं चलता केवल यही पाया जाता है कि नवीन शैली के अंकों की सृष्टि भारत में हुई। फिर यहाँ से अरबों ने यह क्रम सीखा और अरबों से उसका प्रवेश यूरोप में हुआ। इससे पहलं एशिया और यूरोप की चाल्डियन, हिब्रू , ग्रीक, अरव आदि जातियाँ वर्णमाला के अक्षरों से अंकों का काम लेती थीं। अरबों में खलीफा वलीद के समय (ई० स० ७०५-७१५) तक अंकों का प्रचार नहीं था, जिसके बाद उन्होंने भारतवासियों से अंक लिए* | इस विषय में अँगरेजी विश्वकोष 'एसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका' में लिखा है "इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे ( अँगरेजी ) वर्तमान अंक-क्रम ( दशगुणोत्तर ) की उत्पत्ति भारतीय है। संभवतः खगोल- संबंधी उन सारणियों के साथ, जिनको एक भारतीय राजदूत ई० स० ७७३ में वगदाद में लाया, इन अंकों का प्रवेश अरब में हुआ। फिर ई० स० की नवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में प्रसिद्ध अबुजफर मुहम्मद अल खारिज्मी ने अरवी में उक्त क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरवों में उसका प्रचार वढ़ने लगा।" “यूरोप में शून्य सहित यह संपूर्ण अंक-क्रम ई० स० की बारहवीं शताब्दी में अरबों से लिया गया और इस क्रम से बना हुआ

  • प्राचीन और नवीन अंक-क्रन के विस्तृत विवरण के लिये देखो भारतीय

प्राचीन लिपिमाला; पृ० ११०-११। म.--१५