पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६५

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, (११४ ) अंकगणित अल गोरिट्मस (अलगोरिथम ) नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह ( अल्गोरिदमस ) विदेशी शब्द 'अलखारिज्मी' का अक्षरांतर मात्र है, जैसा कि रेनोंड ने अनुमान किया था और उक्त अरब गणित शाखज्ञ की अनुपलब्ध अंकगणित की पुस्तक के कैनिज से मिले हुए अद्वितीय हस्तलिखित अनुवाद के, जो संभवतः एडलहई का किया हुआ है, प्रसिद्ध होने के बाद वह ( अनुगान ) प्रमाणित हो गया है। खारिज्मी के अंकगणित के प्रकारां को पिछले पूर्वीय विद्वानों ने सरल किया और उन अधिक सरल किए हुए प्रकारों का पश्चिमी युरोप में पोसा के लियोनार्डो ने और पूर्वी में माक्सिमस प्लेनुर्डस ने प्रचार किया। 'जीरो' शब्द की उत्पत्ति अरवी के सिफर' से, लिग्री- नार्डों के प्रयुक्त किए हुए 'जिफिरा' शब्द द्वारा प्रतीत होती है।" प्रसिद्ध विद्वान अलबेरूनी ने लिखा है-"हिंदू लोग अपनी वर्ण- माला के अक्षरों को अंकों के स्थान में काम में नहीं लाते, जैसे कि हम हिन वर्णमाला के क्रम से अरवी अक्षरां को काम में लाते हैं। भारतवर्ष के अलग अलग विभागों में जैसे अक्षरां की प्राकृतियाँ भिन्न हैं, वैसे ही संख्या-सूचक चिह्नों की भी प्राकृतियाँ, जिनको अंक कहते हैं, भिन्न हैं। जिन अंकों को हम काम में लाते हैं वे हिंदुओं के सबसे सुंदर अंकों से लिए गए हैं। 'जिन भिन्न भिन्न जातियों से मेरा संपर्क रहा, उन सब की भापायों के संख्यासूचक क्रम के नामों ( इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि ) का मैंने अध्ययन किया है, जिससे मालूम हुआ कि कोई जाति एक हजार से आगे नहीं जानती । अरब लोग भी एक हजार तक ( नाम ) जानते हैं 'इस विषय में मैंने एक अलग पुस्तक लिखी है। अपने अंक-क्रम में, जो हजार से अधिक जानते हैं, वे हिंदू हैं।" ...."वे संख्यासूचक क्रम को अठारवें स्थान तक ले जाते हैं, जिसको परार्द्ध कहते हैं। अंक-

  • एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका; जिल्द १७, पृ० ६२६ ।