(१२६) भारत में विज्ञान सीखने के लियं पाया था। प्रा० साच के कथना- नुसार अलवेरूनी के पास वैद्यक और ज्योतिष विषयक संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद विद्यमान थे। अल गनसूर ने आठवीं सदी में भारत के कई वैद्यक ग्रंथों का अरवी में अनुवाद कराया। प्राचीन अरव-लेखक सैरेपियन ने चरक को प्रामाणिक वैद्य मानते हुए उसका वर्णन किया है। । हारूँरशीद ने कई भारतीय वैद्यों को अपने यहाँ बुलाया था। अरव से ही यूरोप में आयुर्वेद गया, यह निश्चित है। इस तरह भारतीय आयुर्वेद का यूरोप पर बहुत प्रभाव पड़ा। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि हमारे समय में आयुर्वेद सब प्रकार से बहुत उन्नत था। नीचे कुछ विद्वानों की सम्मतियाँ उद्धृत की जाती हैं। लार्ड एंथिल ने एक भाषण में कहा था-हिंदुओं के कानून वनानेवाले मनु संसार के सबसे बड़े स्वच्छता के सुधा- रकों में से एक थे। सर विलियम हंटर लिखते हैं कि भारतीय औपधिशास्त्र शस्त्र-विज्ञान के सारे क्षेत्र का वर्णन करता है शरीर की बनावट का वर्णन है, भीतरी अवयवों, मांसपेशियों, पुट्ठों, धमनियों और नाड़ियों का भी विवरण है। हिंदुओं के निघंटु में खनिज, जांतव (Organic ) एवं वनस्पतिज ओपधियों का बहुत विशद वर्णन मिलता है। उनकी श्रौषधि-निर्माणा-विद्या के तरीके कामिल और ठेठ के हैं, जिनमें आपधियों के वर्गीकरण आदि का वहुत सुंदर वर्णन है। स्वच्छता और पथ्यापथ्य पर भी इसमें विचार किया गया है। प्राचीन भारतीय अंगच्छेद करते थे, रुधिर- स्राव को रोक सकते थे और पथरी निकालते थे। अंत्रवृद्धि ( Hernia ), भगंदर, नाड़ी-त्रण एवं अर्श को वे ठोक कर देते थे। वे मूढ-गर्भ एवं स्त्रियों के रोगों के सूक्ष्म से सूक्ष्म आपरेशन करते
- हिस्ट्री आफ हिंदू कैमिस्ट्री; भूमिया भाग, पृ० ७६ ।
+ रौले; एंश्यंट हिंदू मैडिसिन; पृष्ठ ३८ । । इसमें .