पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१९०

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> ( १३७ ) भूतभाषा ( चूलिका-पैशाची ) के अवंती ( उज्जैन ), पारियात्र (बेतवा और चंबल का निकास) और दशपुर (मंदसोर) में प्रचार होने का उल्लेख है। ईसवी सन पूर्व की दूसरी शताब्दी के आसपास पंजाब में रहनेवाली मालव नाम की जाति ने राजपूताना में होते हुए अवंती देश पर अपना राज्य स्थिर किया, जिससे उस देश का नाम मालव प्रसिद्ध हुआ। संभव है, पैशाची भाषा बोलनेवाले मालव लोगों की भाषा का प्रवेश उस देश में हुआ हो और समय के साथ उसमें कुछ परिवर्तन होने के कारण उसका नाम चूलिका-पैशाची रखा गया हो। इसको पैशाचो का एक भेद ही कहना चाहिए । अपभ्रंश भाषा का प्रचार लाट ( गुजरात में), सुराष्ट्र, श्रवण ( मारवाड़ में ), दक्षिणी पंजाव राजपूताना, अवंती, मंदसोर आदि में था। वस्तुत: अपभ्रंश किसी एक देश की भाषा नहीं, किंतु ऊपर लिखी हुई मागधी आदि भिन्न भिन्न प्राकृत भाषाओं के अपभ्रंश या विगड़े हुए रूप. वाली मिश्रित भाषा का नाम है। उसका प्राय: भारत के दूर दूर के विद्वान् प्रयोग करते थे। राजपूताना, मालवा, काठियावाड़ और कच्छ आदि के चारणों तथा भाटों के डिंगल भाषा के गीत इसी भाषा के पिछले विकृत रूप में हैं। पुरानी हिंदी भी अधिकांश इसी से निकली है। इस भाषा का साहित्य वहुत विस्तृत मिलता है, जो वहुधा कविताबद्ध है। इसमें दोहा छंद प्रधान है। इस भापा का सवसे बृहत् और प्रसिद्ध ग्रंथ 'भविसयत्तकहा है, ने दसवीं सदी में लिखा। महेश्वरसूरि-कृत 'संजममंजरी' पुष्पदंत (पुष्पदंत ) विरचित 'तिसटिमहापुरिसगुणालंकार', नयनंदी निर्मित 'अाराधना', योगींद्रदेव-लिखित 'परमात्मप्रकाश', हरिभद्र का 'नमि- नाहचरिउ', वरदत्त-रचित 'वैरसामिचरिउ', 'अंतरंगसंधि', 'मुलना. अपभ्रश जिसे धनपाल 4

  • नागरीप्रचारिणी पत्रिका, भाग २, पृष्ट १० ।

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