सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिक्षा संपूर्ण साहित्य के संतिम वर्णन के बाद तत्कालीन शिक्षा, शिक्षापद्धति और शिक्षणालयों का भी कुछ विवेचन किया जाता है। हमारे समय के प्रारंभ में शिक्षा का सर्व साधारण में बहुत चार था। गुप्त राजाओं ने शिक्षा के प्रचार के लिये बहुत प्रयत्न किया। उस समय भारतवर्प संसार के सब देशों में सब से अधिक शिक्षित था। चीन, जापान और सुदूर पूर्वी देशों से पढ़ने के लिये विद्यार्थी भारत में आया करते थे। बौद्ध प्राचार्य तथा हिंदु तपस्वी और संन्यासी शिक्षा देने में विशेष भाग लेते थे। उनका प्रत्येक संघाराम या मठ एक एक शिक्षणालय बना हुआ था। प्रत्येक बड़े शहर में कई संघाराम होते थे: हुएन्संग लिखता है कि कनौज में ही कई हजार विद्यार्थी संघारामों में पढ़ते थे। मथुरा में २००० विद्यार्थी अध्ययन करते थे। चीनी यात्रियों के वर्णनों से पता लगता है कि भारत में ५००० मठ या विद्यालय थे, जिनमें २१२१३० विद्यार्थी पड़ते थे। हुएन्त्संग ने भिन्न भिन्न बौद्ध संप्रदायां के मठों में पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या भी दी है। विद्वान् ब्राह्मणों के घर और जैन यतियों के उपाश्रय भी छोटी छोटी पाठशालाओं का काम देते थे। राजाओं की तरफ से भी विद्यालय स्थापित थे। इस तरह प्रायः जगह जगह संपूर्ण भारत में छोटे बड़े शिक्षणालय विद्यमान थे, जिनसे शिक्षा का प्रचार बहुत होता था। केवल छोटे छोटे शिक्षणालय ही नहीं, किंतु आजकल के विश्व- विद्यालयों की समता करनेवाले बड़े बड़े विश्वविद्यालय भी होते थे । ऐसे विश्वविद्यालयों में नालंद, तक्षशिला, विक्रम- नालंद विश्वविद्यालय शील, धनकटक (दक्षिण में ) आदि के नाम मुख्य हैं। हुएन्त्संग ने नालंद विश्वविद्यालय का विस्तृत वर्णन

  • राधाकुमुद मुकर्जी; हर्प-० १२४-२७ ।

, 3