पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१९४

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(१४१ ) मलयालम् के साहित्य ने भी तामिल कविता का अनुकरण किया, परंतु इसमें शीघ्र ही संस्कृत शब्दों की बहुलता आ गई । इसका हमारे निर्दिष्ट समय का कोई ग्रंथ ऐसा उपलब्ध नहीं है जो उल्लेख्य हो। तामिल-साहित्य की भाँति कनड़ी भाषा के साहित्य को भी जैनियों ने अधिक उन्नत किया। इसके साहित्य में काव्य, अलंकार तथा व्याकरण आदि के ग्रंथ मिलते हैं। कनड़ी दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष (प्रथम ) ने नवीं शताब्दी में अलंकार विषय पर 'कविराजमार्ग' लिखा। साहित्यिक ग्रंथों के अतिरिक्त जैन, लिंगायत, शैव और वैष्णवों के सांप्रदायिक ग्रंथ भी इस भाषा में मिलते हैं। इनमें मुख्य ग्रंथ लिंगायत संप्रदाय के प्रथम प्राचार्य वसव का बनाया हुआ 'बसव- पुराण' है। सोमेश्वर का 'शतक' भी एक अच्छा ग्रंथ है। कवि पंप का 'पंपभारत' या 'विक्रमार्जुनविजय' भी हमारे समय का काव्य है और दुर्गसिंह-कृत 'पंचतंत्र' का अनुवाद भी हमारे समय में हुत्रा : इस भाषा पर संस्कृत का वहुत प्रभाव पड़ा और इसमें संस्कृत के बहुत से ग्रंथों का अनुवाद हुआ। तैलगू आंध्र प्रांत में बोली जाती है। इसके साहित्य पर भी संस्कृत का प्रभाव बहुत पड़ा। इसका प्राचीन साहित्य अधिक उपलब्ध नहीं हो सका। पूर्वी सोलंकी राजा तेलगू राजराज ने ग्यारहवीं शताब्दी में अन्य विद्वानों की सहायता लेकर ननियमह ( नन्नप्प ) से 'महाभारत' का अनुवाद इस भाषा में कराया।

  • इम्पीरियल गैजेटियर, जिल्द २, पृ० ४६४-३७

+ एपिग्राफिया इंडिका; जिल्द ५, पृ० ३२ ।