. (१५६ ) राज्य की ओर से सार्वजनिक हित के कार्यों की तरफ भी बहुत ध्यान रहता था ! नगरों में धर्मशालाएँ और कुएँ बनाए जाते थे। गरोव रोगियों के लिये औषधालय भी राज्य सार्वजनिक कार्य की ओर से स्थापित किए जाते थे। सड़कों पर भो यात्रियों के आरास के लिये वृक्ष, जलाशय आदि के प्रबंध किए जाते थे राज्य की ओर से शिक्षणालयों को विशेष सहायता दी जाती थी। इस शासन-प्रबंध के अतिरिक्त भारत की सैनिक व्यवस्था भी कम उन्नत नहीं थी। सैनिक विभाग शासन-प्रबंध सं बिलकुल पृयक् था : प्रांतीय शासकों का संना पर कोई अधि- सैनिक प्रबंध कार नहीं था, उसके अधिकारी विलकुल स्वतंत्र रहते थे। प्रायः हर समय युद्ध आदि की संभ वना के कारमा सनाएँ काफी बड़ी रहती थीं। हर्ष की सेना में ६००० हामी श्रीर १००००० घोड़े थे! हुएन्लंग ने हर्ष की लेना चार प्रकार की- हाथी, घोड़े, रघ और पदाति-बताई हैं। घोड़े भिा भि. दंगों से मँगवाए जाते थे। वाण ने कांयोजज, वनायुज मिधुन. पारनीय प्रादि घोड़ों की जातियों के नाम दिए हैं। पीछे से शनैः शनै: रयों का प्रचार कम होता गया। इन चार प्रकार की सेनायों के अतिरिक्त जल-संना भी बहुत सुसंगठित और व्यवस्थित थी। जिन राज्यों की सीमा पर बड़े बड़े दरिया होते थे वे नौ-सेना रखतं । समुद्री तट के राज्यों को भी नौ-संना रखने की आवश्यकता थी : हुएन्लंग ने अपनी यात्रा के प्रसंग में जहाजों का वर्णन किया है। मलाया, जावा. वाली आदे द्वीपों में हिंदुओं के राज्य विद्यमान थे, इनमें भी जन्न मनायां के सुव्यवस्थित होने का निश्चय होता है । चोल राजा बहुत पनि वार्म प्रान युक्नदांग्स दिल्ल, जि०पृ. ६४.: । ..
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