(१६०) शाली जल-सेना रखते थे। राजराज ने नेर-राज्य का जंगी बड़ा नष्ट कर लंका को अपने राज्य में गिला लिगा पा। राजेन्द्र चोल का जंगी बेड़ा निकोबार पर अंटगन दापों (माजकल का काला पानी) तक पहुंचा था। स्ट्रैयो ने भारतीय सेना में जन-सेना के होने का उल्लेख किया है। जल-सेना की विमानना बहुत प्राचीन काल से थी। मैगस्थनीज ने चंद्रगुम की सेना का वर्णन करते हुए जल-सेना का वृत्तांत लिखा है भिन्न-भिन्न सेनाओं के लिये भिन्न-भिन्न अफसर होते थे। संपूर्ण सेना के अधिकारी को 'महासेनापति', 'महावन्ताध्यन्न' या 'महाबलाधिकृत' कहते थे। 'भाश्व सेनापति', पैदल और घोड़ों की सेना के अध्यक्ष को कहते थे। घोड़ों की सेना के अध्यक्ष को 'वृहदश्ववार' कहते थे। युद्ध-विभाग के कोपाध्यक्ष को 'रणभां- डागाराधिकरण' कहते थे। काश्मीर के इतिहास से एक 'महासा- धनिक' का पता लगता है, जो युद्ध के लिये आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करता था। सेना के सिपाहियों को वेतन नकद दिया जाता था, पर प्रबंध के अन्य कर्मचारियों को अनाज के रूप में दिया जाता था। स्थिर सेना (Standing army ) के अतिरिक्त कठिन अवसरों पर अस्थायी सेना की भी व्यवस्था की जाती थी। कई राज्यों में दूसरे राज्यों के लोग भी भरती किए जाते थे। उपर्युक्त शासन-व्यवस्था और प्रबंध हमारे सारे निर्दिष्ट काल में राजनीतिक स्थिति एक सा ही नहीं रहा। इसमें बहुत परिवर्तन तथा शासन-पद्धति में हुए। हम संक्षेप में उन परिवर्तनों पर कुछ परिवर्तन विचार करते हैं। .
- चिंतामणि विनायक वैद्य; हिस्ट्री ग्राफ मिडिएवल इंडिया; जि० १,
पृ० १४२-१५ । | राधाकुमुद मुकर्जी; हर्प; पृ० ६७-६८ |