पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२१७

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(१६४) है। उसकी इस व्यवस्था के परिणाम स्वरूप खेती बहुत हुई और एक खारी (परिमाण विशेष) चावन्न का दाग २०० दीनारों से ३६ दीनार तक हो गया। तामिल प्रदेश में नदियों को मुहानों के पास राक- कर पानी इकट्ठा करने की व्यवस्था की जाती थी। हमारे समय से पूर्व करिफाल चाल ने कावेरी नदी पर सौ मील का एक बांध बन- वाया था। राजेंद्र (१०१८-३५. ई०) ने अपनी नई राजधानी के पास बड़ा भारी जलाशय बनवाया। बड़े बड़े तालाब भी हमारं समय से बहुत पूर्व बनाए जाते थे। चंद्रगुम मौर्य के समय गिरनार के नीचे एक विशाल सरोवर बनवाया गया था, जिसमें से अशोक ने नहरें निकलवाई। इनकी समय समय पर मरमात हाती रही । बहुत से राजा रयान स्थान पर अपने नाम से बड़े बड़े विशाल तालाब वनवाते थे, जिनसे सिंचाई बहुत अच्छी तरह हो सकती थी। ऐसे तालाव बहुत से स्थानों पर अब भी मिलते हैं। परमार राजा भोज ने भोजपुर में एक बहुत बड़ा तालाब बनवाया घा, जो संसार की कृत्रिम झीलों में सबसे बड़ा था। इसको मुसलमानों ने नष्ट भ्रष्ट कर दिया। अजमेर में आनासागर, बीसला आदि तालाब भी पहले के राजाओं ने वनवाए थे। कुओं से भिन्न भिन्न प्रकार से सिंचाई होती थी, जो आज भी प्रचलित है। इस प्रथा को भारतीय लंका में भी ले गए थे। पराक्रमवाहु ( ११५० ई.) ने लंका में १४७० तालाब और ५३४ नहरें वनवाई और बहुत से तालाब तथा नहरों की मरम्मत कराई। इससे मालूम होता है कि उस समय सिंचाई की तरफ कितना ध्यान दिया जाता था।

  • विनयकुमार सरकार; दी पोलिटिकल इंस्टिट्य शंस एंड प्यूरीज श्राफ दी

हिंदूज पृ० १०३-४। वही; पृ० १०३-४।