पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १६५ ) कृषि के बाद व्यापार की मुख्यता धी भारत के बड़े बड़े शहर व्यापार के केंद्र थे। भारतवर्ष में केवल ग्राम ही नहीं थे, विशाल नगर भी बहुत प्राचीन काल से विद्य- व्यापारिक नगर मान थे। पांड्य राजारों की राजधानी मदुरा बहुत विस्तृत नगर था, जो अपने शानदार और गगनभेदी प्रासादों के कारण प्रसिद्ध था। मलावार के तट पर वंजि (वंचि ) व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्त्व का नगर था। कोरोमंडल तट पर पकर ( कावेरीप्पुम्प- हिनम् ) बहुत उत्तम बंदरगाह था। सोलंकियों की राजधानी वातापी ( बीजापुर जिले में ) अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से महत्त्वशाली थी। बंगाल का बंदरगाह ताम्रलिप्ति ( तमलक ) भी व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्व का और विशाल नगर था, जहाँ से व्यापारी पूर्वीय चीन की तरफ जाते थे। कलौज तो विशाल एवं एक प्रसिद्ध नगर घा। मालवा की उज्जयिनो नगरी भो कम विशाल नहीं थी। यह उत्तरी भारत और भड़ोंच के बंदरगाह के बीच में व्यापारिक दृष्टि में मध्यान्य का काम करती थी। बंबई प्रांत के भड़ोंच (भृगुकच्च.) बंदरगाह से फारस, मिश्र आदि में भारत से माल जाता था। पाटलिपुत्र ना मौर्यकाल से प्रसिद्ध था, जिसका विस्तृत वर्णन मेगास्थनीज ने किया है। उसके कथनानुसार इसके ५७० बुर्ज और ६४ दरवाजचे प्रार उसका क्षेत्रफल २१: मील था, जो अरेलियन के समय के गेम में दुगुने से भी कुछ अधिक था। इसी तरह और भी अनेक बड़े बड़े शहर भारतीय व्यापार के केंद्र थं* | व्यापार जल और स्थल मार्ग से होता था। बड़े बड़े जहाजी वेड़े व्यापार के लिये बनाए गए थे। अरव, फिनोशिया, फारम, मिश्र, ग्रीस, रोम, चंपा, जावा, सुमात्रा आदि के साथ भारत का

  • विनयकुमार सरकार; दी पोलिटिकल इंस्टिटरांस एंड ध्य रीज प्राप.

दी हिंदूज, पृ० ६०-६५