सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. . ( 8 ) बनाकर अपनी प्राज्ञा से यज्ञादि में पशु-हिंसा की रोक टोक की* | अशोक के प्रयत्न से बौद्ध धर्म का प्रचार केवल भारतवर्ष तक ही परिसित न रहा, बल्कि भारत के बाहर लंका तथा उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों में उसका प्रचार और भी बढ़ गया। फिर वौद्ध श्रमणों (साधुओं ) और भिक्षुओं के श्रम से शनैः शनैः उसका प्रचार तिब्यत, चीन, मंचूरिया, मंगोलिया, जापान, कोरिया, स्याम, वर्मा और रिया के किरगिस और कलमुक आदि तक फैल गया। यहाँ बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन फरना अप्रा- संगिक न होगा। बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन दुःखमय है, जीवन और उसके सुखों की लालसा दुःखमूलक है, बौद्ध धर्म के सिद्धांत उस लालसा के नष्ट हो जाने से दुःख का नाश हो जाता है और पवित्र जीवन से यह लालसा नष्ट हो जाती है। महात्मा बुद्ध के शब्दों में बौद्ध मत मध्यम पथ है, अर्थात् न तो भोग-विलास में ही आसक्त रहना चाहिए और न अनिद्रा, अना- हार, तपस्या आदि कठोर कष्ट साधनाओं के द्वारा आत्मा को क्लेश देना चाहिए। इन दोनों मार्गों के बीच में रहकर चलना चाहिए। संसार और उसके सब पदार्थ अनित्य और दुःखमय हैं सव दुःखों का मूल कारण अविद्या है। आत्मनिरोध के द्वारा ही आत्मा की उन्नति हो सकती है। काम अथवा तृष्णा का सव प्रकार परि- त्याग करने से दुःख का निरोध होता है। इस तृष्णा के नाश ही का नाम निर्वाण है। यह निर्वाण जीवित अवस्था में भी प्राप्त हो सकता है। मनुष्य पंच स्कंधों का बना हुआ विशेष प्रकार का एक संघ है, जिसमें विज्ञान-स्कंध की मुख्यता है। विज्ञान-स्कंध को ही हम अपनी परिभाषा में प्रात्मा का स्थान दे सकते हैं। यही पंच स्कंधों का संघ कमों के अनुसार भिन्न भिन्न रूपों में शरीर

  • अशोक की धर्मलिपियाँ; अशोक का पहला शिलालेख ।