(१८६) नीचे तक का वियों के शरीर का हिस्सा बन से टका हुआ है, और किसी किसी के स्तनों पर कपड़े की पट्टी बंधी हुई है, बाकी सारा शरीर खुला है। यहाँ के प्राचीन चित्रादि में स्त्रियों के स्तन बहुधा खुले हुए पाए जाते हैं, या कभी कभी उन पर पट्टियां बंधी हुई दोग्य पड़ती है। पट्टियां बांधने का रिवाज प्राचीन है। श्रीमद्भागवत में भी उसका वर्णन मिलता है- तदंगसंगप्रमुदाकुलेंद्रिया: केशान्दुकलं कुचपट्टिको वा । नांज: प्रतिव्योदुमलं ब्रजनिया विसन्तमालाभरणाः कुरुतुह । राजा की तरफ एक टक दृष्टि लगाकर हाथ में ली हुई गोतियों की कई लड़ें या फई लड़वाली कंठी नजर करता हुआ ईरानी गलची सम्मुख खड़ा है जिससे राजा कुछ कह रहा है। उसके पीछे एक दूसरा ईरानी हाथ में वोतल सी कोई चीज लिए खड़ा है, जिसके पीछे तीसरा ईरानी तुहफे की चीजों से भरी हुई किश्ती धरे हुए है! उसके पीछे पीठ फेरकर खड़ा हुया चौघा ईरानी बाहर से हाथ में कुछ चीज लेकर दरवाजे में प्राते हुए एक दुसरं ईरानी की तरफ देख रहा है और उसके पास एक ईरानी सिपाही कमर में तलवार लगाए खड़ा है और दरवाजे के बाहर ईरानियां के साथ के अन्य पुरुप और घोड़े खड़े हैं। ईरानियों और हिंदुस्तानियों की पोशाक में रात दिन कासा अंतर है। जव हिंदुस्तानियों का करीब करीब सारा शरीर खुला है तो उनका प्रायः सारा ढका हुआ है। उनके सिर पर ऊँचो ईरानी टोपी, कमर तक अँगरखा, चुस्त पायजामा और फई एक के पैरों में मोजे भी हैं और दाढ़ी-मूंछ सवके हैं। ईरानी एलूची ( जिससे राजा कुछ कह रहा है ) के गले में बड़े बड़े मोतियों की एक लड़ी, पानदार कंठी, कानों में लटकते हुए मोतियों के भूपण और कमर में मोतियों से जड़ी हुई कमरपेटी है। दूसरे किसी ईरानी के
- दशमस्कंध; ३३।१८ ।
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