पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५२

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( १८५ ) सहायता मिल सके। तबरी नामक ऐतिहानिक अपनी पुन्नक में लिखना है कि ईरान के बादशाह खुसरा ( दुसरं ) के नन जुन्न । राज्य) छत्तीस ( ई० स० ६२६ ) में उसका एलची राजा पुलकेनी के पास पत्र और तुहफा लेकर गया और पुलकंशी का एन्त्री पत्र लार - हार लेकर उसके पास पहुँचा था। उस समय के दरबार का चित्र एक गुफा की दीवार पर अंकित है जिसमें- राजा गद्दी विछे हुए सिंहासन पर लंबगोलाकृतिक ननिए के सहारे बैठा हुआ है, आसपाग्न चैंबर और पंन्या आनंदाल दिया. तथा अन्य परिचारक श्री पुरुप, चई और कोई राजा के सम्मुख बाई और तीन पुरुप बार एक लड़का मानित के आभूपण पहिने हुए बैठे हैं (जो गजा कामया अमात्यवर्ग में से होने चाहिएँ )। राजा अपना दाहिनावार ईरानी एलची से कुछ कह रहा है। 9:7 ( 31 1 i.;;; मुकुट, गले में बड़े बड़े मोती द मागिया को उसके नीचे सुंदर जड़ाऊ कंठा है। दोनों कड़े हैं। यज्ञोपवीत के रयान पर पचलीम जिसमें प्रवर ( ग्रंथि ) को रयान पर पाँच कमाली में रत्नजटित मेखला है। पोशाक में साधी को कर बाकी सारा शरीर नंगा है। दक्षिणी लोग दाद गले में डालते हैं, उसी कार समंटा हुया याद हटकर पीठे के तकिए पर पड़ा हुला है कार बम दे किनारे गद्दी के प्रागं पड़े हुए दोग्यों हैं. 7. पार गौरवर्ण है ( चेहरे के पान का बना हब :- दीख सकता )। दरबार में जितनं हिंदतानी पुत्र पर आधी जाँघ तक काउनी निवाई दलानी किसी के दादी या मूंट है बामा मनमानी कर मर-२४ ,