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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/३०

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(६ ) प्रकार मौर्य-साम्राज्य के अंत से वैदिक धर्म की उन्नति के साथ साथ बौद्ध धर्म का ह्रास होने लगा। फिर वह क्रमशः अवनत होता ही गया। हुएन्त्संग के यात्रा-विवरण से पाया जाता है कि उसके समय अर्थात् सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में वैदिकधर्मावलंबियों की संख्या बढ़ने और बौद्धों की घटने लगी थी। बाणभट्ट के कथन से पाया जाता है कि थानेश्वर के वैसवंशी राजा प्रभाकरवर्द्धन के ज्येष्ठ पुत्र राज्यवर्धन ने अपने पिता का देहांत होने पर राज्यसुख को छोड़कर भदंत ( बौद्ध भिक्षक ) होने की इच्छा प्रकट की थी और ऐसा ही विचार उसके छोटे भाई हर्ष का भी था, जो कई कारणों से फलीभूत न हो सका। हर्ष भी बौद्ध धर्म की ओर बड़ी रुचि इन बातों से निश्चित है कि सातवीं शताब्दी में राजवंशियों में भी, वैदिक धर्म के अनुयायी होने पर भी, बौद्ध धर्म की ओर सद्भाव अवश्य था। वि० सं० ८४७ ( ई० स० ७६० ) के शेरगढ़ ( कोटा राज्य ) के शिलालेख से पाया जाता है कि नागवंशी देवदत्त ने कोशवर्द्धन पर्वत के पूर्व में एक बौद्ध मंदिर और मठ बनवाया था, जिससे अनुमान होता है कि वह बौद्ध धर्मा- वलंबी था। ई० सन् की बारहवीं शताब्दी के अंत तक मगध और बंगाल को छोड़कर भारतवर्ष के प्रायः सभी विभागों में बौद्ध धर्म नष्टप्राय हो चुका था और वैदिक धर्म ने उसका स्थान ले लिया था। रखता था। जैन धर्म जैन धर्म भी बौद्ध धर्म से कुछ पूर्व भारतवर्ष में प्रादुर्भूत हुआ। महावीर का निर्वाण गौतम बुद्ध से पूर्व हो चुका था। उस समय के वैदिक धर्म के मुख्य सिद्धांत ये थे। जैन धर्म की उत्पत्ति १-वेद ईश्वरीय ज्ञान है। हिंदू धर्म २-वैदिक देवताओं-इन्द्र, वरुण आदि-की पूजा । म०-२ और उस समय का