(१०) ३-यज्ञों में पशुहिंसा । ४-वर्णव्यवस्था । ५-आश्रमव्यवस्था। ६-आत्मा और परमात्मा का सिद्धांत । ७-कर्मफल और पुनर्जन्म का सिद्धांत । महावीर तथा बुद्ध ने उपर्युक्त पहले पांच सिद्धांतों को अस्वीकार किया। महावीर ने केवल दो आश्रम-वानप्रस्थ और संन्यास- माने, जब कि बुद्ध ने केवल संन्यासाश्रम पर ही जोर दिया। पर- मात्मा को महावीर ने स्वीकार न किया और बुद्ध ने भी इस पर कोई विचार न किया : बौद्ध धर्म के विपय में हम ऊपर लिख पाए हैं इसलिये यहाँ केवल जैन धर्म और उसकी प्रगति पर कुछ प्रकाश डालने का यत्न करेंगे। जैनों के कथनानुसार महावीर २४वें तीर्थकर थे। उनसे पूर्व २३ तीर्थकर हो चुके थे। संभवतः यह कल्पना चौद्धों के २४ बुद्धों की कल्पना का अनुकरण हो, अथवा वौद्धों ने जैनों से यह ली हो । महावीर राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय के पुत्र वैशाली में उत्पन्न हुए; उन्होंने तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा लो और वारह वर्ष तक छमवेश में रहकर कठिन तपस्या की। उसके बाद उन्होंने अपने मत का प्रचार आरंभ किया और ७२ वर्ष की अवस्था में उनका निर्वाण हुआ। जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत ये हैं। जैन धर्मावलंबी जीव, अजीव, आश्रव ( मन, वचन और शरीर का व्यापार एवं शुभाशुभ के बंध का हेतु), संबर (आश्रव का रोकनेवाला), जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत बंध, निर्जरा ( बंधकों का क्षय ), मोक्ष, पुण्य और पाप नौ तत्व मानते हैं। जीव अनादि और अनंत है। जीव अर्थात् चैतन्य आत्मा कर्म का कर्त्ता और फल का भोक्ता है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति यह सब व्यक्त और अव्यक्त रूप से ,
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