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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/३६

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(१५) ई० में उत्पन्न हुआ था। पढ़-लिखकर वह अनहिलवाड़ा के जैन उपाश्रय का आचार्य हुआ : वह संस्कृत और प्राकृत का बड़ा भारी विद्वान् था। उसने पाश्रयमहाकाव्य, देशीनाममाला, संस्कृत और प्राकृत के व्याकरण आदि अनेक ग्रंथ लिखे। गुजरात के राजा जयसिंह ( सिद्धराज ) और कुमारपाल पर उसका बहुत प्रभाव था। कुमारपाल ने जैन धर्म स्वीकार कर उसकी उन्नति के लिये बहुत प्रयत्न किया, जिससे गुजरात, काठियावाड़, कच्छ राजपूताना और मालवे में जैन धर्म का प्रचार बहुत हुआ । इन प्रदेशों के अतिरिक्त शेष भारत में जैन धर्म का प्रचार नहीं के बरावर हुआ। पीछे से कहीं कहीं मारवाड़ी व्यापारियों ने जैन-मंदिर ज़रूर वनवाए हैं, परंतु जैन धर्म के अनुयायी बहुत थोड़े ही रह गए हैं। . ब्राह्मण धर्म अंग थे। भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से वैदिक धर्म प्रचलित था । ईश्वर की उपासना, यज्ञ करना तथा वर्णव्यवस्था आदि इसके मुख्य यज्ञ में पशु-हिंसा भी होती थी प्राचीन ब्राह्मण धर्म ईश्वर की उपासना उसके भिन्न भिन्न नामों के अनुसार भिन्न भिन्न रूप में होती थी। प्रायः सारे भारतवर्ष में वैदिक धर्म का प्रचार था। बौद्ध धर्म की उन्नति के समय में उसे राज्य की सहायता मिलने के कारण हिंदू धर्म का प्रचार शनैः शनैः कम होता गया, और जैन धर्म ने भी इसे कुछ हानि पहुँचाई। बौद्ध और जैन धर्मों की उन्नति के समय में भी वैदिक धर्म या हिंदू धर्म क्षीण तो हुआ, परंतु नष्ट नहीं हुआ। ज्योंही बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा त्योंही हिंदू धर्म ने बहुत वेग से उन्नति प्रारंभ की और वह बहुत विकसित तथा पल्लवित होने लगा।

  • सी० वी० वैद्य; हिस्टी श्राफ़ मीडिएवल इंडिया; जिल्द ३, पृ० ४११ ।