पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/३५

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(१४) शैव-मत के प्रचारकों ने वहाँ जैन धर्म को बहुत क्षति पहुँचाई। चोल राजाओं ने, जो पीछे शिव के भक्त हो गए थे, जैन धर्म को वहाँ से उठाने के लिये पर्याप्त प्रयत्न किया राजराज चोल ने मदुरा के मंदिर में बहुत से शैव साधुओं की प्रतिमाएँ बनवाकर रखवाई। कर्नाटक में पहले चालुक्यों ने जैन धर्म को बहुत सहा- यता पहुँचाई थी और दक्षिण के राष्ट्रकूटों के समय (ई० स०८००- १०००) में जैन धर्म बहुत उन्नत हुआ था। पिछले चालुक्य राजाओं ने (ई० स० १०००-१२००) शैव धर्म स्वीकार कर जैन धर्म को वहाँ से उठाने का प्रयत्न किया। जैन प्रतिमाएँ उठाकर वहाँ पौराणिक देवताओं की प्रतिमाएं फिर से रक्खी गई। तुंगभद्रा से परे के कर्नाटक प्रदेश में गंगवंशी राजा जैन थे। ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में चोल राजाओं ने गंगवंशी राजा को परास्त कर दिया। शनैः शनैः होयसल राजाओं ने गंगवाडि पर अधिकार कर लिया। वे भी पहले जैन थे, परंतु रामानुज ने विष्णुवर्धन को वैष्णव बनाकर मैसूर में वैष्णव मत का प्रचार प्रारंभ कर दिया। इस तरह प्रायः संपूर्ण दक्षिण में जैन धर्म क्रमशः क्षीण होता गया। इस अवनति के मुख्य कारण शैव मत का प्रचार और वहां के राजाओं का जैनियों पर अत्याचार ही थे। उड़ीसा में भी शैव मत ने आकर उसके पैर उखाड़ दिए। वहाँ के राजाओं ने जैन धर्म पर अत्याचार कर उसे नष्ट कर दिया* | जब दक्षिण में जैन धर्म का इस तरह ह्रास हो रहा था, पश्चिम में वह बढ़ने और समृद्ध होने लगा। राजपूताना, यह धर्म बहुत बढ़ने लगा, यद्यपि इन प्रदेशों के राजा भी शैव थे। जैन आचार्य हेमचंद्र जैन धर्म की इस वृद्धि का मुख्य कारण था। हेमचंद्र गुजरात में एक श्वेतांबर वैश्य के यहाँ १०८४ . मालवा और गुजरात में

  • सी० वी० वैद्य; हिस्ट्री श्राफ़ मीडिएवल इंडिया; जिल्द ३, पृ०

४०६-१०॥