पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/४०

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. वेदव्यास, भी वासुदेव की पूजा प्रचलित हो चुकी थी अतः भागवत संप्रदाय तथा मूर्ति-पूजा उससे भी प्राचीन होगी । वैष्णव संप्रदाय ने वैदिक धर्म के यज्ञ यागादि नहीं छोड़े। इस संप्रदाय के लोग भी अश्वमेधादि बड़े बड़े यज्ञ करते रहे, जिनमें पशुहिंसा होती रही। पीछे से वैष्णवों ने बौद्ध वैष्णव धर्म के सिद्धति धर्म से प्रभावित होकर अहिंसा को प्रधा- और उसका प्रचार नता दी। भागवत संप्रदाय का मुख्य ग्रंथ पंचरात्र संहिता है। इस संप्रदायवाले अभिगमन (मंदिरों में जाना), उपादान ( पूजा की सामग्री एकत्र करना), इज्या ( पूजा ), स्वाध्याय ( मंत्रों का पढ़ना ) और योग से भगवान का साक्षात्कार होना मानते थे। फिर वैष्णवों ने विष्णु के चौवीस अवतारों- ब्रह्मा, नारद, नर-नारायण , कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वंतरि मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि, हंस और हयग्रीव की कल्पना की; जिनमें से दस अवतार-मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि-मुख्य माने गए । बुद्ध और ऋषभ को हिंदुओं के अवतारों में स्थान देने से निश्चित है कि वौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव हिंदू धर्म पर पड़ गया था, और इसलिये उनके प्रवर्तक विष्णु के अवतारों में सम्मिलित किए गए। संभव है कि चौवीस अवतारों की यह कल्पना भी वौद्धों के २४ बुद्ध और जैनों के २४ तीर्थकरों की कल्पना के अनुकरण पर हुई हो। विष्णु के मंदिर ई० सन् पूर्व २०० से लेकर हमारे निर्दिष्ट काल तक ही नहीं, अब तक वरावर वन रहे हैं। शिलालेखों, ताम्रपत्रों एवं प्राचीन ग्रंथों में विष्णु-पूजकों का वर्णन मिलता है। दक्षिण में भागवत संप्रदाय का

  • सर रामकृष्ण गोराल भांडारकरकृत धैप्णविज्म, शैविज्म एंड अदर

माइनर रिलिजल सिस्टम्स; पृष्ट ८-० । -३ म०