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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/५७

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हैं ( २६ ) थोड़ी ही देखने में आई हैं। ब्रह्मा के कई मंदिर अब तक विद्यमान हैं, जिनमें पूजन भी होता है। ब्रह्मा के एक हाथ में त्रुव होता है, जो यज्ञकर्ता का सूचक है। शिव-पार्वती के ब्रह्मा की मूर्ति विवाहसूचक मूर्ति-समुदाय में, जो कई एक मिले हैं, ब्रह्मा पुरोहित वताया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि जैसे विष्णु और शिव के भिन्न भिन्न संप्रदाय मिलते हैं, वैसे ब्रह्मा के संप्रदाय नहीं मिलते । मूर्ति-कल्पना में ब्रह्मा विष्णु और महेश्वर तीनों एक ही परमात्मा के रूप माने गए ब्रह्मा की कई मूर्तियाँ ऐसी मिली हैं जिनके ऊपर के एक किनारे पर शिव और दूसरे पर विष्णु की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। ऐसे ही विष्णु की मूर्तियों पर शिव और ब्रह्मा की और शिव की मूर्तियों पर ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ मिलती हैं। इससे यह स्पष्ट पाया जाता है कि ये तीनों देवता एक ही परमात्मा या ईश्वर के भिन्न भिन्न रूप माने जाते थे। भक्तों ने अपनी अपनी रुचि के अनुसार चाहे जिसकी उपासना प्रचलित की। पीछे से इनकी स्त्रियों सहित मूर्तियाँ भी बनने लगी और शिव पार्वती की मूर्ति के अतिरिक्त शिव की 'अर्धनारीश्वर' मूर्ति भी मिलती है, जिसमें आधा शरीर शिव का और आधा शरीर पार्वती का होता है। ऐसे ही सम्मिलित मूर्तियाँ भी मिलती हैं। शिव और विष्णु की सम्मिलित मूर्ति को हरिहर और तीनों की सम्मिलित मूर्ति को हरिहर पितामह कहते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ही मुख्य तीन देवता माने जाते थे। अठारह पुराण इन्हीं तीन देवताओं के संबंध में हैं। विष्णु, नारदीय, भागवत, गरुड़, पद्म और वराह पुराण विष्णु निदेव-पूजा से, मत्स्य, कूर्म, लिंग, वायु, स्कंद और अग्नि पुराण शिव से तथा ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कडेय, • भविष्य, वामन और ब्रह्म पुराण बहुधा ब्रह्मा से संबंध रखते हैं ।