पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/६

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मैं , ( ग ) पूर्ण और महत्त्वशाली विषय पर विस्तार से लिखने के लिये पर्याप्त समय, पर्याप्त अध्यवसाय और प्रचुर सामग्री की आवश्यकता है। 'परंतु इस गुरु तर कार्य को सुचारु रूप से संपादन करने की योग्यता मुझमें नहीं है चाहता था कि यह कार्य किसी योग्यतर विद्वान् को सौंपा जाता। मुझो खेद है कि मेरा स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण मैं इसमें यथेष्ट समय एवं सहयोग न दे सका। इस विषय को मैंने तीन भागों में विभक्त किया है। पहले भाग या व्याख्यान में तत्कालीन धर्मों-बौद्ध, जैन तथा हिंदू-के भिन्न भिन्न संप्रदायों के विकास और ह्रास तथा उस समय की सामाजिक स्थिति, वर्णाश्रम-व्यवस्था, दासप्रथा, रहन सहन, रीति रिवाज आदि पर प्रकाश डाला गया है। दूसरे भाग में भारतीय साहित्य, साहित्य, अर्थात् कोष, व्याकरण, दर्शन, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, राजनीति, अर्थशासा, शिल्ल, संगीत, चित्रकला आदि विषयों की तत्कालीन स्थिति पर विचार किया गया है। तीसरे भाग में उस समय की शासन- पद्धति, ग्राम-पंचायतों का निर्माण और उनके अधिकार, सैनिक व्यवस्था तथा न्यायादि पर प्रकाश डालते हुए उस दीर्घ काल में होने- वाले परिवर्तनों का संक्षेप से उल्लेख कर उस समय की आर्थिक स्थिति—कृषि, व्यापार, व्यवसाय, व्यापार-मार्ग, आर्थिक समृद्धि आदि-पर भी कुछ विचार किया गया है। ऊपर लिखे हुए विषयों में से प्रायः प्रत्येक विषय इतना गंभीर और विस्तृत है कि उन पर स्वतंत्र ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। केवल तीन व्याख्यानों में इन सबका समावेश संक्षिप्त रूप में ही हो सकता है। इस समय की संस्कृति पर प्रकाश डालने के लिये, जो सामग्री मिलती है, वह बहुत नहीं है। विशुद्ध इतिहास के ग्रंथ, जिनमें तत्कालीन संस्कृति का स्पष्ट उल्लेख हो, वहुत थोड़ी संख्या में मिलते हैं। नहीं कहा जा सकता कि कितने ऐसे ग्रंथ लिखे गए हों और . .