( ३१ ) ब्राह्मण कन्या और सूर्य से होना मानते थे और सूर्य की पूजा करते थे । अलवरूनी लिखता है-"भारत के तमाम सूर्यमंदिरों के पुजारी ईरानी मग होते हैं"। राजपूताने में इनको सेवक और भोजक कहते हैं। सूर्य के हजारों मंदिर बने और अब तक सैकड़ों मंदिर विद्यमान हैं, जिनमें सबसे विशाल और सारे प्राकार सहित संगमर- मर का बना हुआ सिरोही राज्य के वरमाण गाँव में विद्यमान है। यह मंदिर प्राचीन है और इसके स्तंभों पर नवीं और दसवीं सदी के लेख खुदे हैं, जिनमें उस मंदिर को दिए हुए दानों का उल्लेख है। जैसे शिवमंदिर में वृषभ और विष्णुमंदिर में गरुड़ उनके वाहन होते हैं, वैसे सूर्यमंदिर में सूर्य के सामने चतुरस्र स्तंभ के ऊपर कीली पर घूमता हुआ उसके वाहन रूप एक कमलाकृति चक्र होता है। ऐसे चक्र आज भी कई मंदिरों में विद्यमान हैं। इस रघ को खींचनेवाले सात घोड़ों की कल्पना गई है इसी से सूर्य को सप्ताश्व या सप्तसप्ति कहते हैं। कई मूर्तियों में सूर्य के नीचे सात घोड़े भी बने हुए हैं। एक सूर्यमंदिर के बाहर की तरफ सात घोड़ी- वाली सूर्य की कुछ ऐसी मूर्तियाँ भी हमने देखी हैं, जिनके नीचे का भाग बूट सहित सूर्य का और ऊपर का ब्रह्मा, विष्णु या शिव का है। पाटण (झालरापाटन राज्य ) के पद्मनाभ नामक विष्णुमंदिर के, जो अनुमानतः दसवीं शताब्दी का बना हुआ है, पीछे के ताक में ऐसी मूर्ति है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य तीनों का मिश्रण है, जैसा कि उनके भिन्न भिन्न आयुधों से पाया जाता है । सूर्य के विद्यमान मंदिरों में सबसे पुराना मंदसोर का सूर्य-मंदिर है, जो ई. स. ४३७ में बना था, जैसा कि उसके शिलालेख से जान पड़ता है। सुलतान के सूर्य-मंदिर का उल्लेख हुएनत्संग नं किया है। अरव यात्री अलवेरुनी ने भी इस मंदिर को ग्यारहवीं सदी में देखा था। हर्ष के एक ताम्र पत्र में उसके पूर्वज प्रभाकरवर्द्धन, .
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