. ( ३३ ) हिंदूधर्म के इन सव संप्रदायों पर विचार करने के पश्चात् उसके कुछ सामान्य अंगों पर संक्षिप्त विचार करना आवश्यक है। हिंदुओं के प्रमाणभूत ग्रंथ वेद हैं। हमारे निर्दिष्ट हिन्दूधर्म के सामान्य काल में भी वेद पढ़े जाते थे, परंतु वेदों की अंग वह प्रधानता वैसी न रही थी। अलबरूनी लिखता है 'ब्राह्मण वेदों को अर्थ समझे ही विना कंठस्थ कर लेते हैं और बहुत थोड़े ब्राह्मण उसका अर्थ समझने की कोशिश करते हैं। ब्राह्मण क्षत्रियों को वेद पढ़ाते हैं, वैश्यों और शूद्रों को नहीं । वैश्यों ने पहले बौद्ध होकर बहुधा वेदादि को पढ़ना छोड़ दिया था, तब से उनका संबंध वेदों से छूट गया : अलबेरूनी लिखता है कि वेद लिखे नहीं जाते थे, याद किए जाते थे। इस पद्धति से बहुत सा वैदिक साहित्य नष्ट हो गया। वेदों की जगह पुराणों का प्रचार होता गया और पौराणिक संस्कारों का प्रचलन बढ़ता गया । श्राद्ध और तर्पण की प्रधा बहुत बढ़ गई। यज्ञों का प्रचार कम हो गया था और पौराणिक देव- ताओं की पूजा बढ़ गई थी, जिसका वर्णन पिछले पृष्ठों में किया जा चुका है। अलबेस्नी ने कई मंदिरों की मूर्तियों का भी वर्णन किया है । मंदिरों के साथ साथ मठों की भी स्थापना प्रारंभ कर दी गई इस संबंध में हिंदुओं ने वौद्धों का अनुकरण किया। संप्रदायों और उपसंप्रदायों के साधु और तपरवी इन मठों में रहते थे। अनेक शिलालेखों में मंदिरों के साथ मठ, वाग और व्याख्यान- शालाओं के होने का उल्लेख मिलता है। बहुत से संस्कारों का वर्णन याज्ञवल्क्य स्मृति और उसकी मिताक्षरा टीका में है। वौद्धों की रघ- यात्रा का अनुकरण भी हिंदुओं ने कर लिया। इन सब परिवर्तनों कं थी। सव अलदेख्नीज इंडिया. साथ लत पैंगरेजी अनुदाद; जिल्द , पृष्ट १२८ । वही; जिल्द १. पृष्ट १२५ ।
- वि०वि०वैद्य; हिस्ट्री प्राफा भिडिएबल इंडिया; जिल्द ३. पृष्ट १३.४.२४॥
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