पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/८६

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. > ( ४१ ) कहलाते हैं। उनमें से बहुत से कवि, ज्योतिषी, दार्शनिक और दैवज्ञ राजा के दरवार में रहते हैं* " इसी तरह अलमसऊदी उनके विषय में लिखता है कि ब्राह्मणों का उत्तम और श्रेष्ठ कुल की तरह सम्मान होता है प्रायः ब्राह्मण ही कुल-क्रम से राजाओं के मंत्री आदि होते हैं। ब्राह्मणों के मुख्य कर्त्तव्य पढ़ना, पढ़ाना यज्ञ करना और कराना, तथा दान देना और लेना था। बौद्ध धर्म के प्रचार के समय वर्ण- व्यवस्था के शिथिल होने के कारण ब्राह्मणों के हाथ से उपर्युक्त कार्यो में से कई चले गए थे। यज्ञादि के बंद होने से बहुत से ब्राह्मणों की आजीविका नष्ट हो गई थी, इसलिये ब्राह्मण अन्य वर्णो' के कार्य भी करने लगे। इसी के अनुसार नई स्मृतियाँ भी बनीं । वे लोग क्षत्रिय और वैश्य का भी काम करने लगे। बौद्ध मत के अनुसार कृषि पाप होने के कारण बहुत से वैश्यों ने बौद्ध होकर कृषि छोड़ दी। यह अवसर देखकर बहुत से ब्राह्मण कृपि पर पराशर स्मृति में सव वर्णो को कृपि करने की आज्ञा दी गई है। इसके अतिरिक्त उस समय के अनुकूल लब वों को शस्त्र ग्रहण करने का अधिकार भी दिया गया। इतना ही नहीं, उस समय ब्राह्मण शिल्प, व्यापार और दुकानदारी भी करते थे, गुजारा करने लगे 1 इलियट हिस्ट्री श्राफ इंडिया; जि० १, पृ० ६ । । चि० वि० वैय; हिरटी श्राफ सिडिएवल इंडिया: जिरुद २, पृष्ट १८ । पटकर्मसहितो विप्रः कृषिकर्म कारयेत् ॥ २ ॥ पत्रिपोपि हापि कृत्वा देवान् विप्रांश्च पूजयेत् ।। ८ ।। वैश्यः शूद्वस्तधाकुर्यात कृपिदाणिज्यशिल्पकम् ।। ६६ ।। अध्याय २. प्राणवाणे वर्णसंकरे वा माहाणवैश्यो दारूमावदीयातान । वसिष्टस्मृति, अ०३। म०-