पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/९२

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सर्वोच्च पद ब्रह्मा का प्राप्त है ब्रह्मशिल्पी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण कुल के ब्राह्मण अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद होने के कारण अथर्ववेदीय विश्वकर्मा ब्राह्मण भी कहलाते हैं वेदों अथर्ववेदी ब्राह्मणों की महिमा का अभूतपूर्व वर्णन है अथर्ववेद में विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों को यज्ञवेदियों (यज्ञकुण्डों) का निर्माण करके यज्ञ का विस्तार करने वाला अर्थात यज्ञकर्ता कहा गया है |

यस्यां वेदिं परिगृहणन्ति भूम्यां यस्यां यज्ञं तन्वते विश्वकर्माण:। यस्यां मीयन्ते स्वरव: पृथिव्यामूर्ध्वा: शुक्रा आहुत्या: पुरस्तात् ॥

सा नो भूमीर्वर्धयद् वर्धमाना ॥ – (अथर्ववेद कांड-१२ , सूक्त-१, मंत्र-१३) अर्थात :- जिस भूमि पर सभी ओर वेदिकाऍ (यज्ञकुण्डों) का निर्माण करके विश्वकर्मादि (शिल्पी ब्राह्मण) यज्ञ का विस्तार करके यज्ञ करते हैं जहाँ शुक्र (स्वच्छ या उत्पादक) आहुतियों के पूर्व यज्ञीय आधार स्थापित किए जाते हैं तथा यज्ञीय उद्घोष होते हैं वह वर्धमान भूमि हम सब का विकास करे , उपर्युक्त सभी अथर्ववेद के प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि निर्माण का कर्म ब्राह्मणों का है इसलिए शिल्प विद्या को ब्रह्मशिल्पी विद्या भी कहा जाता है इन अकाट्य वैदिक प्रमाणों शिल्पकर्म ब्राह्मण कर्म सिद्ध होता है और इसको करने वाले ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मण अथवा अथर्ववेदीय विश्वकर्मा ब्राह्मण कहलाते हैं |

शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ १/७/१/५ स्पष्ट में कहा गया है कि यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म: अर्थात यज्ञ ही मनुष्यों का श्रेष्ठतम कर्म है |

अब हम आपको वाल्मीकि रामायण का एक श्लोक का उदाहरण देकर शिल्पियो द्वारा किये यज्ञकर्म अर्थात श्रेष्ठकर्म का वर्णन करेंगे |

नचावज्ञाप्रयोक्ततव्या दाम क्रोध भयादपि। यज्ञकर्मसुयेऽब्यग्रा: पुरुष शिल्पकारिणी॥

तेषामपि विशेषण पूजाकार्या यथाक्रमम् येस्यु: स॑पूजिता: सर्वेवसुभिर्भोजनेनच।। (रामायण बालकाण्ड, सर्ग-१३)Use mita