"यदि-तो" पाते हैं। "जो" साधारण भाषा में और 'यदि शिष्ट अथवा पुस्तक की भाषा में आता है। उदा.--"जो तू अपने मन से सच्ची है तो पति के घर में दासी होकर भी रहना अच्छा है।" "यदि ईश्वरेच्छा से यह वही ब्राह्मण हो तो बड़ी अच्छी बात है।" अवधारण में "तो,' के बदले "तोभी" आता है; जैसे, "जो (कुटुम्ब) होता तोभी मैं न देता।" ___"जो कभी कभी "जब" के अर्थ में आता है; जैसे, "जो वह स्नेह ही न रहा तो अब सुधि दिलाये क्या होता है।" "जो" का पर्यायवाची उर्दू शब्द "अगर" भी हिन्दी में प्रचलित है। यद्यपि-तथापि (तोभी)-ये शब्द जिन वाक्यों में आते हैं, उनके निश्चयात्मक विधानों में परस्पर विरोध पाया जाता है; जैसे, "यद्यपि यह देश तब तक जङ्गलों से भरा हुआ था, तथापि अयोध्या अच्छी बस गई थी।" "तथापि" के बदले बहुधा "तोभी' और कभा कभी "परन्तु" श्राता है ; जैसे, “यद्यपि हम वनवासी हैं तोभी लोक के व्यवहारों को भली भांति जानते हैं।" "यद्यपि गुरु ने कहा है, पर यह तो बड़ा पाप सा है।" ___ चाहे--परंतु-जब "यद्यपि के अर्थ में कुछ संदेह रहता है, तब उसके बदले "चाहे" पाता है; जैसे, "उसने चाहे अपनी सखियों की ओर ही देखा हो, परंतु मैंने यही जाना।" . .. - "चाहे" बहुधा संबंधवाचक सर्वनाम, विशेषण वा क्रिया-विशेषण के साथ प्राकर उनकी विशेषता बतलाता है और प्रयोग के अनुसार क्रिया-विशेषण होता है; जैसे, "यहां चाहे जो कह लो; परंतु अदालत
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