पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१०४

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( १०१ ) है, अर्थात् ये एक दूसरे से जुदा नहीं हैं।" कभी कभी "अर्थात्" के बदले. "अथवा", "वा", "या" पाते हैं; जैसे, "वस्ती अर्थात् जनस्थान वा जनपद का तो नाम भी मुश्किल से मिलता था।" "तुम्हारी हैसियत वा स्थिति चाहे जैली हो।" "याने" (उर्दू) "अर्थात्" का समानार्थी है। मानो-उत्प्रेक्षा* में श्राता है; जैसे, "यह चित्र ऐसा सुहावना लगता है मानो साक्षात् सुन्दरापा आगे खड़ा हो।" L/ चौथा अध्याय . विस्मयादि-बोधक २०७-जिन अव्ययों का संबंध वाक्य से नहीं रहता और जो वक्ता के केवल हर्ष-शोकादि भाव सूचित करते हैं, उन्हें विस्मयादि-बोधक अव्यय कहते हैं; जैसे, "हाय ! अब मैं क्या करूँ !" "हैं ! यह क्या कहते हो !” इन वाक्यों में "हाय" दुःख और "हैं" आश्चर्य तथा क्रोध सूचित करता है; और जिन वाक्यों में ये शब्द हैं, उनसे इनका कोई संबंध नहीं है। · २०८-भिन्न भिन्न मनोविकार सूचित करने के लिए भिन्न भिन्न विस्मयादि-बोधक उपयोग में आते हैं; जैसे, हर्षबोधक-पाहा! वाह वा! धन्य धन्य ! शाबाश! जय ! जयति ! शोकवोधक-आह ! अह ! हा हा ! हाय ! दइया रे ! बाप रे ! ब्राहि त्राहि ! राम राम ! हा राम !

  • एक प्रकार की उपमा ।

- BVCL Annapustan. 6217 Liby 2217 491.35 K129MH) 60008 २og