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( १०२ ) 'आश्चर्यबोधक-वाह ! हैं ! ऐ ! ओहो ! वाह वाह ! क्या ! - अनुमोदनवोधक-ठीक ! वाह ! अच्छा ! शाबाश ! हाँ हाँ ! भला ! तिरस्कारबोधक-छिः ! हट ! अरे ! दूर ! धिक ! चुप ! स्वीकारबोधक-हाँ ! जी हां ! अच्छा ! जी! ठीक ! बहुत अच्छा ! संवोधनद्योतक-अरे ! रे ! (छोटों के लिए), अजी लो ! हे ! हो ! क्या ! अहो ! क्यों! [सूचना-स्त्री के लिए "पारे" का रूप "अरी" और "रे" का रूप "री" होता है। आदर और बहुत्व के लिए दोनों लिङ्गों में "अहो", "अजी" पाते हैं। "सत्य-हरिश्चंद्र' में स्त्रीलिंग संज्ञा के साथ "३" पाया है; जैसे, “वाह रे ! महानुभावता !" यह प्रयोग अशुद्ध है।] २०६-कई एक क्रियाएँ, संज्ञाएँ, विशेषण और क्रिया- विशेषण भी विस्मयादिबोधक हो जाते हैं; जैसे, भगवान् ! राम राम ! अच्छा ! लो ! हट ! चुप ! क्यों ! खैर !