पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/११

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तीन से अधिक व्यंजनों का संयोग नहीं होता; जैसे, स्तम्भ, मत्स्य, माहात्म्य।

१६--जब किसी व्यंजन का संयोग उसी व्यंजन के साथ होता है, तब वह संयोग द्वित्व कहलाता है, जैसे, अन्न, सत्ता।

१७--संयोग में जिस क्रम से व्यंजनों का उच्चारण होता है, उसी क्रम से वे लिखे जाते हैं; जैसे, अन्त, यत्न, अशक्त, सत्कार।

१८--क्ष, त्र, ज्ञ जिन व्यंजनों के मेल से बने हैं, उनका कुछ भी रूप संयोग में नहीं दिखाई देता, इसलिए कोई कोई उन्हें व्यंजनों के साथ वर्णमाला के अंत में लिख देते हैं। क् और ष के मेल से क्ष, त् और र् के मेल से त्र और ज और ञ के मेल से ज्ञ बनता है।

१९--पाई (।) वाले आद्य वर्णों की पाई संयोग में गिर जाती है जैसे, प् + य = प्य, त् + थ = त्थ, त् + म् + य = त्म्य।

२०--ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, ह, ये सात व्यंजन संयोग के आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं और इनके अंत का संयक्त व्यंजन पूर्व वर्ण के नीचे बिना सिरे के लिखा जाता है; जैसे, अङ्कुर, उच्छवास, टट्टी, गट्ठा, हड्डी, प्रह्लाद, सह्याद्रि।

२१--कई संयुक्त अक्षर दो प्रकार से लिखे जाते हैं; जैसे, क्+क = क्क, क्क; व्+व = व्व, वृ; ल् + ल = ल्ल, ल्ल; क+ ल = क्ल, क्ल; श्+व श्व, श् व; क्ष = क्ष, त्र=त्र, ज=ज्ञ।