२२--यदि रकार के पीछे कोई व्यंजन हो तो रकार उस व्यंजन के ऊपर यह रूप (र्क) धारण करता है जिसे रेफ कहते हैं; जैसे, धर्म, सर्व, अर्थ। यदि रकार किसी व्यंजन के पीछे आता है तो उसका रूप दो प्रकार का होता है--
(अ) खड़ी पाईवाले व्यंजनों के नीचे रकार इस रूप (क्र) से लिखा जाता है; जैसे, चक्र, भद्र, ह्रस्व, वज्र।
(आ) दूसरे व्यंजनों के नीचे उसका यह रूप (ट्र) होता है। जैसे, राष्ट्र, त्रिपुंड्र, कृच्छ।
[सूचना--व्रजभाषा में बहुधा र् + य का रूप, रय होता है। जैसे, मारयो, हारयो।]
२३--ङ्, ञ्, ण्, न्, म्, अपने ही वर्ग के व्यंजनों से मिल सकते हैं; पर उनके बदले में विकल्प से* अनुस्वार आ सकता है; जैसे, गङ्गा = गंगा, चञ्चल = चंचल, पण्डित = पंडित, दन्त = दंत, कम्प = कंप।
२४--साधारण व्यंजनों के समान संयुक्त व्यंजनों में भी स्वर जोड़कर बारहखड़ी बनाते हैं; जैसे, क्र, क्रा, क्रि, क्री, क्रु, क्रू, क्रे, क्रै, क्रो, क्रौ, क्रं, क्रः।