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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/११०

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. ( १०७ ) २-संस्कृत शब्द पुल्लिंग (अ) जिन संज्ञाओं के अंत में त्र होता है; जैसे, चित्र,. क्षेत्र, पात्र, नेत्र, गोत्र, चरित्र, शस्त्र । (आ) नांत संज्ञाएँ ; जैसे,पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन।। अप०–'पवन' उभयलिंग है। (इ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में त्व, त्य, व, र्य होता है; जैसे, सतीत्व, बहुत्व, नृत्य, कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य । ( ई ) जिन शब्दों के अंत में "आर", "आय” वा “आस"" हो; जैसे, विकार, विस्तार, अध्याय, उपाय, उल्लास, विकास। अप०-सहाय, प्राय । (उ) "अ' प्रत्ययांत संज्ञाएँ; जैसे, क्रोध, मोह, पाक, त्याग। अप.-'जय' स्त्रीलिंग और 'विनय' उभयलिंग है। स्त्रीलिंग (अ.) आकारांत संज्ञाएँ; जैसे, दया, माया, कृपा, लज्जा, तमा। ( आ ) नाकारांत संज्ञाएँ; जैसे, प्रार्थना, वंदना, प्रस्ता-- क्ना, वेदना। (इ) उकारांत संज्ञाएँ; जैसे, वायु, रेणु,रज्जु,जानु,मृत्यु । (ई) जिनके अंत में "ति" वा "नि" होती है; जैसे... गति, मति, जाति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि ।