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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१११

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(ई) कुछ अकारांत संज्ञाएँ; जैसे, घर, पत्थर, दुःख, प्रेम, शरीर । स्त्रीलिंग (अ) ईकारांत संज्ञाएँ; जैसे, नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी। अप.-पानी, घी, जी, मोती, दही, मही। (आ) जनवाचक याकारांत संज्ञाएँ; जैसे, फुड़िया, खटिया, डिबिया, पुड़िया, ठिलिया। ___ (इ) तकारांत संज्ञाएँ; जैसे, रात, बात, लात, छत, भीत, पत। अप०-भात, खेत, सूत, गात, ति । (ई) ऊकारांत संज्ञाएँ; जैसे, बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ । अप०-आँसू , बालू , रतालू, टेसू । (उ) सकारांत संज्ञाएँ; जैसे, प्यास, मिठास, निदास, रास ( लगाम ), बास, साँस। . अप०–निकास, कांस। (3) कृदंत की अकारांत संज्ञाएँ; जैसे, लूट, मार. समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकार । अप०-खेल, नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार । (ऋ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट, वा हट, होता है; जैसे, सजावट, बनावट, घबराहट, चिकनाहट, झंझट ।