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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/११७

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( ११२ ) सुनार-सुनारिन नाती-नातिन लुहार-लुहारिन अहीर-प्रहीरिन धोबी-धोबिन वाव-बाधिन तेली-तेलिन कुँजदा-कुंजदिन साँप-सापिन (अ) कई एक संज्ञाओं में "नी" लगती है; जैसे- ऊँट-ऊँटनी बाघ-बाधनी हाथी-हथनी मोर-मोरनी रीछ-रीछनी सिंह--सिंहनी टहलुपा-टहलनी हिंदू-हिंदूनी जाट-जाटनी २२६-उपनाम-वाचक पुल्लिंग शब्दों के अंत में "श्राइन" आदेश होता है; और यदि आदि अक्षर का स्वर 'आ' हो तो उसे ह्रस्व कर देते हैं; जैसे- पांडे-पड़ाइन बाबू-बबुअाइन दूबे-दुबाइन ठाकुर-ठकुराइन पाठक-पठकाइन बनिया-बनियाइन मिसिर-मिसिराइन लाला ललाइन सुकुल-सुकुलाइन (अ) कई एक शब्दों के अंत में "पानी" लगाते हैं: जैसे- खत्री-खत्रानी देवर-देवरानी सेठ-सेठानी • जेठ-जिठानी मेहतर-मेहतरानी चौधरी-चौधरानी. २२७-कोई कोई पुल्लिंग शब्द स्त्रीलिंग शब्दों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं; जैसे- भेड़-भेड़ा बहिन-बहनोई रह-रडुमा भैंस-भैंसा ननद-ननदोई - जीजी-जीजा . २२८-कई एक स्त्री-प्रत्ययांत (और स्त्रीलिंग) शन्द अर्थ को दृष्टि से केवल स्त्रियों के लिए आते हैं, इसलिए उनके