पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१२४

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( ११६ ) कथा-कथाएँ बहू-बहुए । माता-माताएँ लू-लुए ( क ) सानुस्वार ओकारांत और औकारांत संज्ञाएँ बहु- वचन में बहुधा अविकृत रहती हैं; जैसे, दौ, जोखों, सरसों, गौं। हिंदी में ये शब्द बहुत कम हैं। २-उर्दू शब्द २४६-हिंदी-गत उर्दू शब्दों का बहुवचन बनाने के लिए उनमें बहुधा हिंदी प्रत्यय लगाये जाते हैं; जैसे, शाहजादा- शाहजादे, बेगम-वेगमें। उर्दू भाषा के मूल बहुवचन के कुछ नियम यहाँ लिखे जाते हैं- (१) फारसी प्राणिवाचक संज्ञाओं का बहुवचन बहुधा "श्रान" लंगाने से बनता है; जैसे, साहब-साहबान, मालिक-मालिकान, काश्तकार-काश्तकारान । (२) फारसी अप्राणिवाचक संज्ञाओं का बहुवचन (अरबी की नकल पर) बहुधा "पात" लगाकर बनाते हैं; जैसे, कागज-काग- जात, दिह (गाँव )-दिहात । (३) कई एक उर्दू श्राकारांत पुलिंग शब्द, संस्कृत और हिंदी शब्द के समान, बहुवचन में अविकृत रहते हैं; जैसे, सौदा, दरिया, मिर्या । २५०-जिन मनुष्यवांचक पुल्लिंग शब्दों के रूप दोनों वचनों में एक से होते हैं, उनके बहुवचन में बहुधा "लोग" शब्द का प्रयोग करते हैं; जैसे, “ये ऋषि लोग आपके सम्मुख चले आते हैं।" "आर्य लोग सूर्य के उपासक थे।" .