सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १३५ ) (आ) "आप" शब्द का एक रूप "आपस" है जिसका प्रयोग कोई कोई लेखक संज्ञा के समान भी करते हैं; जैसे, "तुम्हारे आपस में अच्छी प्रीति है।" (इ) "अपना" जब संज्ञा के समान निज लोगों के अर्थ में आता है, तब उसकी कारक रचना हिंदी आकारांत संज्ञाओं के समान दोनों वचनों में होती है; जैसे, "अपने मात-पिता बिन जग में कोई नहीं अपना पाया !" "वह अपनों के पास गया।" (ई) कभी कभी "अपना" के बदले "निज" (सर्वनाम ) का संबंध-कारक आता है, और कभी कभी दोनों रूप मिलकर पाते हैं; जैसे, निज का माल, अपना निज का नौकर । ___२७१-"आप" शब्द आदरसूचक भी है । इस अर्थ में उसकी कारक-रचना निजवाचक "आप" से भिन्न होती है। विभक्ति के पहले आदरसूचक “आप” का रूप विकृत नहीं होता । इसका प्रयोग आदरार्थ बहुवचन में होने के कारण बहुत्व का बोध होने के लिए, इसके साथ "लोग” या “सब" लगा देते हैं। इसके साथ "ने” विभक्ति आती है और संबंध- कारक में "का-के-की" विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। आदरसूचक "आप" एक० (प्रादर) (बहु० संख्या) आप आप लोग आपने आप लोगों ने .. कर्म-संप्र० आप को . आप लोगों को कारक कर्ता