सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १५४ ) ३१३-नीचे लिखे भूतकालिक कृदंत नियम-विरुद्ध बनते हैं। होना-हुश्रा जाना-गया करना-किया लेना--लिया देना--दिया । ३१४-भूतकालिक कृदंत का प्रयोग बहुधा आकारात विशेषण के समान होता है; जैसे, मरा घोड़ा, गिरा घर, उठे हाथ, सुनी बात, लिखी चिट्ठियाँ। (अ) वर्तमानकालिक और भूतकालिक कृदंतों के साथ बहुधा "हुश्रा" लगाते हैं और इसमें भी मूल कृदंतों के समान रूपांतर होता है; जैसे, दौड़ता हुआ घोड़ा, चलती हुई गाड़ी, देखी हुई वस्तु, मरे हुए लोग। (श्रा) वर्तमानकात्तिक और भूतकालिक कृदंत कभी कभी संज्ञा के समान पाते हैं; जैसे, मरता क्या न करता, डूबते को तिनके का सहारा, हाथ का दिया, पिसे को पीसना । २-कृदंत अव्यय ३१५-कृदंत अव्यय चार प्रकार के हैं- (१) पूर्वकालिक, (२) तात्कालिक, (३) अपूर्ण क्रियाद्योतक और ( ४ ) पूर्ण क्रियाद्योतक । ___३१६-पूर्वकालिक कृदंत अव्यय धातु के रूप में रहता है अथवा धातु के अंत में "के", "कर" या "करो" जोड़ने से बनता है; जैसे- धातु पूर्वकालिक कृदंत , जाना जाके, जाकर, जा करके क्रिया जा