पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१८

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तीव्र और अनुनासिक धीमी ध्वनि है; परंतु दोनों के उच्चारण के लिए पूर्ववर्ती स्वर की आवश्यकता होती है; जैसे, रंग, रँग; कंबल, कँवल, वेदांत, दाँत; हंस, हँसना।

३८ -– विसर्ग (:) कंठ्य वर्ण है। इसके उच्चारण में ह् के उच्चारण को एक झटका सा देकर श्वास को मुँह से एकदम छोड़ते हैं। अनुस्वार वा अनुनासिक के समान विसर्ग का उच्चारण भी किसी स्वर के पश्चात् होता है। यह हकार की अपेक्षा कुछ धीमा बोला जाता है; जैसे, दुःख, अंत:करण, छिः, हः।

३९ -- दो महाप्राण व्यंजनों का उच्चारण एक साथ नहीं हो सकता; इसलिए उनके संयोग में पूर्व वर्ण अल्पप्राण ही रहता है; जैसे, रक्खा, अच्छा, पत्थर।

४० -- हिंदी में ज्ञ का उच्चारण बहुधा 'ग्यँ' के सदृश होता है। महाराष्ट्र लोग इसका उच्चारण 'द्न्यँ' के समान करते हैं। पर इसका शुद्ध उच्चारण प्राय: 'ज्यँ' के समान है।

[सूचना -- उर्दू के प्रभाव से ज और फ का एक एक और उच्चारण होता है। ज का दूसरा उच्चारण दंत-तालव्य और फ का दंतोष्ठ्य है। इन उच्चारणों के लिए अक्षरों के नीचे एक एक विंदी लगाते हैं; जैसे, फ़ुरसत, ज़रूरत, इत्यादि। ज़ और फ़ से अँगरेज़ी के भी कुछ अक्षरों का उच्चारण प्रकट होता है; जैसे, फ़ीस, स्वेज़।]

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