पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२००

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( १८५ ) (१) हिंदी कृदंत प्र-यह प्रत्यय अकारांत धातुओं में जोड़ा जाता है और इसके योग से भाववाचक संज्ञाएं बनती हैं। उदा०- लूटना-लूट मारना-मार जांचना-जाँच चमकना-चमक पहुँचना-पहुँच समझना-समझ आ-इस प्रत्यय के योग से बहुधा भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे, घेरना--घेरा, फेरना--फेरा, जोड़ना--जोड़ा। . (अ) कोई कोई करणवाचक संज्ञाएं; जैसे, झूलना-झूला, ठेलना-ठेला, घेरना-वेरा । आई-इस प्रत्यय से भाववाचक संज्ञाएं बनती हैं जिनसे (१) क्रिया के व्यापार और (२) क्रिया के दामों का बोध होता है। (१) लड़ना-लड़ाई, समाना-समाई, चढ़ना-चढ़ाई। (२) लिखना-लिखाई, पीसना-पिसाई। प्राऊ-यह प्रत्यय किसी किसी धातु में योग्यता के अर्थ में लगता है; जैसे, टिकना-टिकाऊ, बिकना-बिकाऊ । पाव-(भाववाचक)-जैसे, चढ़ना-चढ़ाव, बचना- बचाव, छिड़कना--छिड़काव, बहना- बहाव, लगना--लगाव । प्रावट-(भाववाचक)--जैसे, लिखना--लिखावट, थकना-- थकावट, रुकना--रुकावट, बनना--बनावट, सजना-सजावट । आवा-( भाववाचक )-जैसे, भुलाना-भुलावा, छलना-छलावा, बुलाना-बुलावा, चलाना-चलावा।