(२०२ ) करण तत्पुरुष-(संस्कृत ) ईश्वरदत्त, तुलसीकृत, भक्तिवश । (हिंदी) मनमाना, गुणभरा, दईमारा, कपड़छन, मदमाता। संप्रदान तत्पुरुष -(संस्कृत) कृष्णार्पण, देशभक्ति । (हिंदी) रसोईघर, गुड़बच, ठकुर-सुहाती, हथकड़ी । अपादान तत्पुरुष-(संस्कृत) ऋणमुक्त, पदच्युत । (हिंदी) देश-निकाला, गुरुभाई, कामचोर, जन्मरोगी । संबंध तत्पुरुष-(संस्कृत) राजपुत्र, प्रजापति, देवालय । (हिंदी) वनमानुस, घुड़दौड़, राजपूत, लखपती । अधिकरण तत्पुरुष-(संस्कृत) ग्रामवास, गृहस्थ । (हिंदी) मनमौजी, श्राप-बीती, काना-फूसी । ३६६--जिस समास के विग्रह में दोनों पदों के साथ एक ही ( कर्ता-कारक की ) विभक्ति आती है, उसे कर्म- धारय कहते हैं। उदा०--परमात्मा, गुरु-देव।। ३७०-कर्मधारय समास दो प्रकार का है । जिस समास से विशेष्य-विशेषण भाव सूचित होता है, उसे विशेषता- वाचक कर्मधारय कहते हैं; और जिससे उपमानोपमेय-भाव* जाना जाता है, उसे उपमावाचक कर्मधारय कहते हैं। ३७१-विशेषतावाचक कर्मधारय समास के आगे लिखे तीन भेद होते हैं-
- उपमेय-जिसकी उपमा दी जाय । उपमान जिससे उपमा
दी जाय।