(२०७ ) (ग) शब्दों को उनके अर्थ और संबंध की प्रधानता के अनुसार वाक्य में यथा-स्थान रखना क्रम कहलाता है। ३७८-वाक्य में शब्दों का परस्पर संबंध दो रीतियों से बतलाया जा सकता है- (१) शब्दों को उनके अर्थ और प्रयोग के अनुसार मिलाकर वाक्य बनाने से और (२) वाक्य के अवयवों को उनके अर्थ और प्रयोग के अनुसार अलग अलग करने से। पहली रीति को वाक्य-रचना और दूसरी रीति को वाक्य- पृथक्करण कहते हैं। ३७६ वाक्य में मुख्य दो शब्द होते हैं-(१) उद्देश्य और ( २) विधेय । वाक्य में जिस वस्तु के विषय में विधान किया जाता है, उसे सूचित करनेवाले शब्द को उद्देश्य कहते हैं, और उद्देश्य के विषय में विधान करनेवाला शब्द विधेय कहलाता है। उदा० “पानी गिरा]" इस वाक्य में “पानी" शब्द उद्देश्य और "गिरा" विधेय है। ३८०-जब वाक्य में दो ही शब्द रहते हैं, तब उद्देश्य में संज्ञा अथवा सर्वनाम और विधेय में क्रिया आती है। उद्देश्य की संज्ञा बहुधा कर्ता-कारक में रहती है और क्रिया किसी एक काल, पुरुष, लिंग, वचन, वाच्य, अर्थ और प्रयोग में आती है। यदि क्रिया सकर्मक हो तो उसके साथ भी कर्म आता है। वाक्य के और भी खंड होते हैं: पर वे सब मुख्य दोनों खंडों के आश्रित रहते हैं।
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