(२२४ ) संज्ञा-उपवाक्य ४१७-संज्ञा-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के संबंध से बहुधा नीचे लिखे किसी एक स्थान में आता है- (क) उद्देश्य इससे जान पड़ता है "कि बुरी संगति का फल बुरा होता है"। (ख) कर्म-वह जानती भी नहीं "कि धर्म किसे कहते हैं"। मैंने सुना है कि "आपके देश में अच्छा राज्य-प्रबंध है। पूर्ति-मेरा विचार है कि "हिंदी का एक साप्ताहिक पत्र निकालू"। (ग) समानाधिकरण शब्द-इसका फल यह होता है कि "इनकी तादाद अधिक नहीं होने पाती। ४१८-संज्ञा-उपवाक्य बहुधा स्वरूपवाचक समुच्चयबोधक कि' वा 'जो' से आरंभ होता है; जैसे, वह कहता है "कि ___ मैं कल जाऊँगा"; आपको कब योग्य है "कि वन में बसोग। यही कारण है "जो मर्म ही उनकी समझ में नहीं आता।" विशेषण-उपवाक्य ४१६-वाक्य में जिन जिन स्थानों में संज्ञा आती है उन्हीं स्थानों में उसके साथ विशेषण-उपवाक्य लगाया सकता है; जैसे- - (क) उद्देश्य के साथ-एक बड़ा बुद्धिमान डाक्टर था जो राजनीति के तत्त्व को अच्छी तरह समझता था।
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