पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ५१ ) (क) व्यक्तिवाचक संज्ञा के साथ जो विशेषण आता है, वह उस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित नहीं करता, किंतु समानाधिकरण होता है; जैसे, पतिव्रता सीता, प्रतापी भोज, दयालु ईश्वर । इन उदाहरणों में विशेपण संज्ञा के अर्थ को केवल स्पष्ट करते हैं। "पतिव्रता सीता" वही व्यक्ति है जो 'सीता' है । इसी प्रकार "भोज" और "प्रतापी भोज" एक ही व्यक्ति के नाम हैं। किसी शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिए जो शब्द पाते हैं, वे समानाधिकरण कहलाते हैं। ऊपर के वाक्यों में "पतिव्रता", "प्रतापी" और "दयालु" समानाधिकरण विशेषण हैं। (ख) जातिवाचक संज्ञा के साथ उसका साधारण धर्म सूचित करनेवाला विशेपण समानाधिकरण होता है; जैसे, मूक पशु, अबोध बच्चा, काला कौश्रा, ठंडी बर्फ. । इन उदाहरणों में विशेषणों के कारण संज्ञा की व्यापकता कम नहीं होती। १२०-विशेषण के योग से जिस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है, उस संज्ञा को विशेष्य कहते हैं; जैसे, "ठंठी हवा चली"-इस वाक्य में 'ठंढी' विशेषण और 'हवा' विशेष्य है। . १२१–विशेष्य के साथ विशेषण का प्रयोग दो प्रकार का होता है। एक प्रयोग को विशेष्य-विशेषण और दूसरे को विधेय-विशेषण कहते हैं। विशेष्य-विशेषण विशेष्य के साथ और विधेय-विशेषण क्रिया के साथ आता है; जैसे, "ऐसी सुडौल चीज़ कहीं नहीं बन सकती।" "हमें तो. संवार सूना देख पड़ता है ।"