पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/७१

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चौथा अध्याय क्रिया १५७-जिस विकारी शब्द के प्रयोग से हम किसी वस्तु के विषय में कुछ विधान करते हैं, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे, "हरिण भागा", "राजा नगर में आये", "मैं जाऊँगा", "घास हरी होती है। पहले वाक्य में हरिण के विषय में "भागा" शब्द के द्वारा विधान किया गया है; इसलिए. "भागा" शब्द क्रिया है। इसी प्रकार दूसरे वाक्य में "आये”, तीसरे वाक्य में “जाऊँगा" और चौथे वाक्य में "होती है। शब्द से विधान किया गया है; इसलिए "आये, "जाऊँगा और "होती है" शब्द क्रिया है। १५८-जिस मूल शब्द में विकार होने से क्रिया बनती है, उसे धातु कहते हैं; जैसे, "भागा" क्रिया में "आ" प्रत्यय है जो "भाग” मूल शब्द में लगा है; इसलिए "भागा" क्रिया का धातु "भाग" है। इसी तरह "आये" क्रिया का धातु "आ" "जाऊँगा" क्रिया का धातु "जाए, और "होती है। क्रिया का धातु "हो" है। (अ) धातु के अंत में "न" जोड़ने से जो शब्द बनता है. उसे क्रिया'का साधारण रूप कहते हैं; जैसे, भाग-ना, श्रा-ना, जा-नाः हो-ना। कोश में भाग, श्रा, जा, हो, इत्यादि धातुओं के वदले. .