पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/७४

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( ७१ ) ... १६२-कोई कोई धातु प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक दोनों होते हैं; जैसे, खुजलाना, भरना, भूलना, घिसना, बदलना । इनको उभय-विध धातु कहते हैं। उदा०-"मेरे हाथ खुजलाते हैं" (अक०)। "उसका वदन खुजलाकर उसकी सेवा करने में उसने कोई कसर नहीं की।" (सक०) "खेल-तमाशे की चीजें देखकर भोले भाले श्रादमियों का जी ललचाता है।" (अक०) । "वाइट अपने असबाब की खरीदारी के लिए मदन- मोहन को ललचाता है।" (सक०)। "बूंद बूंद करके तालाव भरता है।" (अक०)। "प्यारी ने आँखें भरके कहा।" (सक०)। १६३-जब सकर्मक क्रिया के व्यापार का फल किसी विशेष पदार्थ पर न पड़कर उस जाति के सभी पदार्थो पर ‘पड़ता है, तब उसका कर्म प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती; जैसे, "ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है और गूंगा बोलता है।" "इस पाठशाला में कितने लड़के पढ़ते हैं ?" १६४-कुछ अकर्मक धातु ऐसे हैं जिनका आशय कभी कभी अकेले कर्त्ता से पूर्णतया प्रकट नहीं होता । कर्ता के विषय में पूर्ण-विधान होने के लिए इन धातुओं के साथ कोई संज्ञा या विशेषण आता है। इन क्रियाओं को अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं; और जो शब्द इनका आशय पूरा करने के लिए आते हैं, उन्हें पूर्ति कहते हैं। "होना", "रहना”, “बनना", "दिखना", "निकलना", "ठहरना”, अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ हैं । उदा०–“लड़का चतुर है ।” “साधु चोर निकला।"