पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/७५

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"नौकर बीमार रहा।" "आप मेरे मित्र ठहरे।" "यह मनुष्य विदेशी दिखता है।" इन वाक्यों में "चतुर" "चोर", "बीमार" आदि शब्द पूर्ति हैं। (अ) अपूर्ण क्रियाओं से असाधारण अर्थ में पूरा आशय भी पाया जाता है; जैसे, “ईश्वर है", "सवेरा हुआ", "सूरज निकला",. "गाड़ी दिखलाई देती है। १६५-देना, बतलाना, कहना, सुनना और इन्ही अर्थो के दूसरे कई सकर्मक धातुओं के साथ दो दो कर्म रहते हैं। एक कर्म से बहुधा पदार्थ का बोध होता है और उसे मुख्य कर्म कहते हैं; और दूसरा कर्म, जो बहुधा प्राणि-- वाचक होता है, गौण कर्म कहलाता है; जैसे, "गुरु ने शिष्य का (गौण कर्म ) पाथी ( मुख्य कर्म ) दी।" "मैं तुम्हें उपाय बताता हूँ।" इन क्रियाओं को द्विकमक.' कहते हैं। (अ) गौण कर्म कभी कभी लुप्त रहता है; जैसे, "राजा ने दान दिया।" "पंडित कथा सुनाते हैं।" १६६-कभी कभी करना, बनाना, समझना, पाना, मानना आदि धातुओं का आशय कर्म के रहते भी पूरा नहीं होता.. इसलिए उनके साथ पूर्ति के रूप में कोई संज्ञा या विशेषण आता है; जैसे, “अहिल्याबाई ने गंगाधर को अपना दीवान बनाया ।" "मैंने चोर को साधु समझा ।" इन क्रियाओं को अपूर्ण सकर्मक क्रियाएं कहते हैं और इनकी पूर्ति कर्म-पूर्ति