कहलाती है। इससे भिन्न अकर्मक अपूर्ण क्रिया की पूर्ति को उद्देश-पूर्ति कहते हैं। १६७-किसी किसी अकर्मक और किसी किसी सकर्मक धातु के साथ उसी धातु से बनी हुई भाववाचक संज्ञा कर्म के समान प्रयुक्त होती है; जैसे, "लड़का अच्छी चाल चलता है।" "सिपाही कई लड़ाइयाँ लड़ा।" "लड़कियाँ खेल खेल रही हैं।” “पक्षी अनोखी बोली बोलते हैं।" ऐसे कर्म को सजातीय कर्म और क्रिया को सजातीय दिया कहते हैं। यौगिक धातु . १६८-व्युत्पत्ति के अनुसार धातुओं के दो भेद होते हैं- (१) मूल धातु और (२) यौगिक धातु । १६६-मूल धातु वे हैं जो किसी दूसरे शब्द से न बने हाँ; जैसे, करना, बैठना, चलना, लेना। १७०-जो धातु किसी दूसरे शब्द से बनाये जाते हैं, वे योगिक धातु कहलाते हैं; जैसे, “चलना” से “चलाना", "रंग" से "रंगना", "चिकना” से “चिकनाना"। [सूचना-संयुक्त धातु यौगिक धातुओं का एक भेद है।]. १७१-यौगिक धातु तीन प्रकार से बनते हैं-(१) धातु में प्रत्यय जोड़ने से सकर्मक तथा प्रेरणार्थक धात बनते हैं; (२) दूसरे शब्द-भेदों में प्रत्यय जोड़ने से नाम-धात वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाता है, उसे लंहेश कहते हैं।
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