पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/७८

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(अ) सर प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं; जैसे, "दवी बिल्ली चूहों से कान कटाती है।" "लड़के ने कपड़ा सिलवाया।" (आ) पीना, खाना, देखना, समझना, देना, पड़ना, सुनना,. श्रादि क्रियाओं के दोनों प्रेरणार्थक रूप द्विकर्मक होते हैं; जैसे, "प्यासे को पानी पिलाओ ।" "बाप ने लड़के को कहानी सुनाई।" "बच्चे को रोटी खिलवानो।" . १७४-प्रेरणार्थक क्रियाओं के बनाने के नियम नौजे, दिये जाते हैं- १-मूल धातु के अंत में "आ" जोड़ने से पहला प्रेरणार्थक, और “वा” जोड़ने से दूसरा प्रेरणार्थक रूप बनता है; जैसे, मू० धा० . ५० प्रे० दू० प्रे० उठ-ना उठा-ना उठवा-ना औट-ना औटा-ना औटवा-ना गिर-ना गिरा-ना गिरवा-ना चल-ना चला-ना चलवा-ना पढ़-ना पढ़ा-ना पढ़वा-ना फैल-ना फैला-ना फैलवा-ना (अ) कहीं कहीं दो अक्षरों के धातु में 'ऐ' वा 'और को छोड़कर आदि का अन्य दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है; जैसे, ओढ़ना उढ़ाना उढ़वाना जगाना जगवाना.. जागना