पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/९७

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( ६४ ) या, वा, अथवा, किंवा–ये चारों शन्द प्रायः पर्यायवाची हैं। इनमें से, "या" उर्दू और शेष तीन संस्कृत हैं। "अथवा' और "किंवा" में दूसरे अव्ययों के साथ "वा" मिला है। द्विरुक्ति के निवारण के लिए इन शब्दों का एक साथ प्रयोग होता है ; जैसे, "किसी पुस्तक की अथवा किसी ग्रंथकार या प्रकाशक की एक से अधिक पुस्तकों की प्रशंसा में किसी ने एक प्रस्ताव पास कर दिया ।" या-या-ये शब्द जोड़े से श्राते हैं और अकेले "या" की अपेक्षा विभाग का अधिक निश्चय सूचित करते हैं; जैसे, “या तो पेड़ में फांसी लगाकर मर जाऊँगी या गंगा में कूद पड़गी।"/ t. प्रायः इसी अर्थ में "चाहे-चाहे" अाते हैं; जैसे, "arls को राई करै रचि राई को चाहे सुमेरू बनावै ।" ये शब्द ": " क्रिया से बने हुए हैं। ___क्या-क्या-ये प्रश्नवाचक सर्वनाम समुच्चय-बोधक के समान उपयोग में आते हैं। ये वाक्य में दो वा अधिक शब्दों का विभाग बता- कर उन सबका इकट्ठा उल्लेख करते हैं; जैसे, "क्या मनुष्य और क्या जीवजन्तु, मैंने अपना सारा जन्म इन्हीं का भला करने में गंवाया ।" "क्या स्त्री क्या पुरुष सवही के मन में अानन्द छा रहा था।" न-ज-ये दुहरे क्रिया-विशेषण समुच्चय-बोधक होकर पाते हैं। इनसे दो या अधिक शब्दों में से प्रत्येक का त्याग सूचित होता है; जैसे, "न उन्हें नींद आती थी न भूख प्यास लगती थी।" कभी कभी इनसे अशक्यता का भी बोध होता है; जैसे, "न ये अपने प्रबन्धों से छुट्टी पावेंगे न कहीं जायेंगे।" ।