पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१३

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मनुस्मृति ०४ भाषानुवाद कोई ग्रामण ६ कोई३ कोई एकही कर्म करके जीविका करते हैं, अन्तिम को पन्तिरादि इष्टि कर लेना ही पर्याप्त है बाह्मण लोकवृत्त न करे सतोप से रहे जीविका में साक्षणको स्वाध्यायादि के विन बचाने चाहिये और नित्य शास्त्राभ्यास रखना १६-२० एक पुस्तक में शास्त्राभ्यासार्थ १ लोक पाया गया है पञ्चयज्ञ न त्यागे और ज्ञानी के ज्ञान में हो या अग्निहोत्र दर्श पौर्णमास का समय और कर्तव्यता २५

  • भवसस्येष्टि और पशुयज्ञ" प्रक्षिप्त

अपूजित अतिथि न रहने पावे, अतिथि कैसे न माने कैसे माने पलिवैश्वदेष भी यथाशक्ति अवश्य करना स्नातक विप्र के दान लेने आदि में नियम और दएहादि धारण रहन सहन के प्रकार रजस्वला से गमन न करना तथा स्त्रीके साथ अन्य व्यवहारो का नियम चार पुस्तकों में १ अधिक लोक मिला है एक वस्त्र पहने भोजन न करे, न नग्न होकर करे, कई स्थानोमलमूत्र त्याग का निषेध और विधि ४५-५२ मग्नि को मुग्ध से न फूके इत्यादि काम ५३-५४ सन्ध्याकाल के निषिद्धकर्म पुष्पमाला न उतारना जल में मल, मूत्र, थूक मादि न करे मकेले शयनादि का मिषेध, दहने हाथ के काम 1