पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१५

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मनुस्मृति ०४ (१२) भाषानुवाद पोपी घामाघी में त्याग, उपगन्न शुक्ल पक्ष में वेद स पल में अन्य प्रन्य पढना, वेद पाठ में निन्दिन स्थान अनध्यायो का वर्णन अमावास्या, अष्टमी, पौर्णिमा, चतुर्दशीमें मैथुनत्याग, भोजनोत्तरादि काल में स्नान त्याग, गुरु मादि को छाया न लांघना, चतुष्पथ सेवन का निपेय, उपटनादि पर न बैठना १२८-१३२ धेरी आदि के पास न जाना, परस्त्रीगमनत्याग, क्षनियादि का तथा अपना अपमान न करना, सत्य प्रिय घोलना, बहुत अन्धेरे में न चलना, हीनाङ्ग आदि को न चिढाना, झूठे हाथी प्राणादि को न छूना इत्यादि १३३-१४ मङ्गलाचारादियुक्त रहना, जप, सघन नित्य फग्ना, वेदान्यास परम तप है, वेदाभ्यासादि ४ उपायो से पूर्व जाति ज्ञान, सावित्र होम, शान्ति हाम, अएका अन्यष्टका श्राद्ध की कर्तव्यता रहनेक स्थानादिसे दुर मूनादिकरना स्नानादि फई कार्य दोपहर से पहले ही करना, पत्रों पर धार्मिक आदि के दर्शनार्थ जाना, पद्धों का अभिवादन, जाता के पीछे जाना सदाचार का सेवन और फल, दुराचारी को निन्दा परवश कामो को स्ववश करना, आचार्यादि को दुख न देना. मास्तिकत्यादि न करना. दूसरों को न मारे, शिष्य पुत्र की ताड़ना का नियम ।