पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१६

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मनु० विषयसूची 808 । मानग को धमकी नदेना आदि । अधार्मिशादि सुन्ध नहीं पाने, फर्म कभी न करे, अधर्म शीघ्र नहीं ना देर में अवश्य नाश करेगा, इत्यादि १९६-१७ हाथ पांव नेत्रादि से चपलतान करे, बाप दादा के सन्मार्ग पर चले, ऋत्विजादिसे विवाद न करे १७8-12 आचार्य आदि बालोकादि के खामी हैं प्रनिग्रह लेने से बचे, प्रतिग्रह के नियम १८६-११ वैडालवृत्तिकादि को दान न देना इत्यादि पराये जलाशय में न नहाना, विना दिये यानादि वर्सने वाला स्वामी के चतुर्थाश पाप का भागो है, नधादि में स्नान करना, या का अवश्य सेवन करना, यम, नियमों की गणना २.१-२०१ मोनियादि के रचित यज्ञ में भोजन न करना, मदमत्तादि का भोजन, गौ आदिकाधा भोजन आदि धौरादिका भोजन, सनकाश, असमक्तादि अन्न और पिशुनादि का अन त्याज्य है २०५-२९७ त्याज्यान मक्षणके भिन्न २ दुष्कल,निन्दा, ग्राह्मणान्न को प्रशंपा, श्रद्धा से दिये की प्रशंसा २१८-२२६ दानप्रशंपा, मिन दानों के मिन्नर फल, ब्रह्मान की घेता. नपसे गर्वन करना इत्यादि २२७-२३७ धर्मको प्रशंमा, मृत्यु होनेपर भी धर्मका साथ जाना २३८-२४३ उच्चों से सम्बन्धादि करना २४४-२५५ मृदु जिनेन्द्रिय की प्रशसा "पधादकादि भिक्षाको निषेध न करें" इत्यादि प्र०२४७-२५३ भीतर बाहर एक सा बर्ताव रखना, अन्यथा नहीं २५४-२०६